(ताटंक छंद)
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वीणा वादिनी माँ शारदे,
तेरी महिमा गाता हूँ ।
माँ तेरे पावन चरणों में,
अपना शीश झुकाता हूँ ।।
अज्ञान-तिमिर का नाश करो,
अंतस-दीप जला दो माँ ।
हंस वाहिनी कमल आसिनी,
अपना दरस दिखा दो माँ ।।
ज्ञान दायिनी मंगलकरणी,
विधा का वर दो माता।
आशीष-कृपा का हाथ उठा,
मेरे सिर धर दो माता ।।
काम क्रोध मद मोह जलाकर,
उर में प्यार बसा देना।
हे जग तारिणी माँ भारती,
ज्ञान सुधा बरसा देना ।
श्वेत धारिणी पाप नाशिनी,
न्यारी तेरी माया है ।
तेरी कृपा-दृष्टि से माता,
मैंने सब कुछ पाया है ।।
✒ विनय कुमार 'बुद्ध'
14 टिप्पणियाँ
Very nice Sir.
जवाब देंहटाएंthank u
हटाएंबहुत ही सुंदर कविता सर जी
जवाब देंहटाएंdhanyavad
हटाएं🙏🙏ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय माँ शारदे
हटाएंSir kavita bahut achhi hai
जवाब देंहटाएंJai mata di 🙏🙏🙏
हृदयतल से आभार
हटाएंBhut hi sunder poet sir
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुबोध
हटाएंबहुत अच्छी सरस्वती वंदना सर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुंदन
हटाएंअत्यंत सुन्दर प्रस्तुति।बहुत बहुत बधाई 🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
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