जिस पिता के कंधे पर बैठ कर हमने दुनिया देखी है, जिन्होनें खुद अभावों को झेला और हमारी जरुरतों को पूरा किया । उस देव तुल्य पिता के प्रति हमारा भी कुछ फर्ज बनता है । हमारी अच्छी परवरिश के चलते जिन्होनें अपने आप को गांव-घर तक हीं सीमित रखा। उनको बाहर के बदलते परिवेश से परिचय कराना हमारा भी फर्ज बनता है ।
मैंने सोचा पापा जी को कहीं बाहर
घुमाने ले जाऊँ । ऐसी जगह जो दर्शनीय हो और आज के नये दौर के टेकनोलॉजी से भी
सम्पन्न हो । तो ऐसे में मुझे विश्व में गुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर शहर
का ख्याल आया । मैंने यह शहर इसलिए भी चुना कि वहाँ
मेरी बेटी “मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट आँफ टेकनोलॉजी”
में केमिकल इन्जीनियरिंग से ‘बी.टेक’ की पढ़ाई कर रही है । जिस कारण मैं उस शहर से
अच्छी तरह परिचित हूँ।
मेरी धर्मपत्नी भी
उत्सुक थी, पापा जी को घुमाने के लिए । हालांकि
वह स्वयं अपने स्वास्थ्य-समस्या के कारण नहीं जा पा रही थी । योजना तैयार कर ली गई, किस ट्रेन से आना-जाना है, कहाँ रुकना, क्या-क्या देखना और किन-किन व्यंजनों
का आनन्द हम उठा सकते हैं । मैं, मेरी पत्नी और मेरी बेटी ने मिलकर योजना
को अंतिम रुप दे दिया ।
योजना
के अनुसार भारत की प्रतिष्ठित ट्रेन-सेवा मानी जाने वाली “राजधानी एक्सप्रेस’’ से हीं पापा को ले जाना था । अब समस्या
यह थी कि पापा जी अपने पैतृक निवास बिहार के खगड़िया में रहते थे जबकि राजधानी एक्सप्रेस
उस स्टेशन पर नहीं रुकती है । सो हमने जयपुर तक की यात्रा को तीन अलग-अलग ट्रेनों
में पूरी करने की योजना बनाई ।
मेरी
यात्रा असम के न्यू बंगाईगाँव स्टेशन से 15 जुलाई 2016 को शुरु हुई, जहाँ मैं एक रेलवे कर्मचारी हूँ । 15909 अवध-असम एक्सप्रेस रात में 01 बजकर 15 मिनट पर खुली और अगले दिन खगड़िया स्टेशन दिन के लगभग एक बजे पहुँचा दी
। पापा जी तयशुदा कार्यक्रम के तहत स्टेशन पर पहुँच गये । पापा को मैंने ट्रेन में
चढ़ा लिया, गाड़ी फिर से चल पड़ी । करीब घंटे भर
बाद हमलोग बरौनी स्टेशन आ गये । वहाँ हमने ट्रेन छोड़ दी । हमलोग प्रतीक्षालय आ गये
क्योंकि हमारी ट्रेन वहाँ से शाम सवा सात बजे थी । वहाँ कुछ
बच्चे थे, जिसे देखते हीं पापा जी अपने मास्टर जी वाले रुप में आ गए । दरअसल
स्कूल के बच्चों का एक ग्रुप ‘कश्मीर’ घूमने जा रहा था । पापा जी अपने चिर-परिचित अंदाज में बच्चों को सम्बोधित
कर रहे थे -
बोये जाते हैं बेटे,
पर उग आती हैं
बेटियां ।
खाद-पानी मिलती है
बेटों को,
पर लहलहाती हैं
बेटियां॥
मेरे पापा जी थोड़े
राजनेता स्वभाव के भी थे और उन्होनें यह देख लिया कि इस ग्रुप में लड़कियों की
संख्या अधिक है । लड़कियां काफी खुश नजर आ रही थी ।
आखिरकार
हमारी ट्रेन 12423 राजधानी एक्सप्रेस के
आगमन की सूचना हुई, हमलोग प्लेटफॉर्म पर
आ गये । ट्रेन रुकी, उसमें चढ़कर अपनी-अपनी सीट पकड़ ली ।
पापा जी खुश थे कि उन्हें नीचे वाली सीट मिली, वरना ऊपर के
सीट पर चढ़ने-उतरने में दिक्कत होती । जब मैंने बताया कि बुजुर्ग यात्रियों को
रेलवे नीचे वाली सीट देने में वरीयता देती है तो उन्होनें रेलवे के इस कदम को
अच्छा बताया, साथ ही टिकट के कीमत में भी छूट पर खुशी जताई ।
मैंने उन्हें बताया कि रेलवे आम यात्रियों को लगभग पचास से अधिक (तिरपन) तरह के
अलग-अलग संवर्गो में टिकट की कीमतों में रियायत देती है । ये रियायत वरिष्ठ
नागरिकों के अलावा छात्रों, युवाओं,
बेरोजगारों, मरीजों, विकलांगों, पत्रकारों, खिलाड़ियों, एन.सी.सी. और
स्काउट वालों, सैनिकों और उनकी विधवाओं, किसानों, चिकित्सकों
और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त लोगों को
दी जाती है ।
ट्रेन खुलते हीं आई.आर.सी.टी.सी. के कैटरिंग वाले ने पानी की बोतलें लाकर दी । चादर, तकिया, कम्बल व एक छोटा तौलिया पहले से मौजूद थी । आम ट्रेनों के बजाय राजधानी एक्सप्रेस के ट्रेनों में कुछ खास सुविधायें दी जाती है । सबसे बड़ी सुविधा यह कि आपकी सीट पर चाय, जलपान, खाना व अन्य चीज परोसे जाते हैं ।
हमारे
सहयात्री के रुप में उसी कम्पार्टमेंट में एक असमिया दम्पति अपने ईलाज के लिए
दिल्ली जा रहे थे । एक नौकरीपेशा बंगाली युवक अपने ड्यूटी के सिलसिले में सफर कर
रहा था और एक युवक गुवाहाटी से दिल्ली जा रहा था, वो आई.आई.टी. गुवाहाटी का स्टूडेंट था । पूरे कम्पार्टमेंट में परिचय
के बाद एक अपनत्व का माहौल बन गया था । एक दूसरे के स्लीपर (चप्पल) पहन कर बाथरुम
जा रहे थे । घर से लाये कुछ ड्राय फ्रूट्स (सूखे मेवे) व हाजमे की गोली तो कोई घर
के बने अचार आपस में आदान-प्रदान कर रहे थे । हालांकि रेलवे इस तरह के आदान-प्रदान
पर हिदायत देती है, कहीं कोई यात्री किसी नशा-खुरानी
गिरोह का शिकार न हो जाय । पर सभी लोग ऐसे नहीं होते हैं । समाज के कुछ अवांछित
लोगों के चलते हमारा पूरा सभ्य समाज शक के दायरे में आ जाता है ।
मेरे पास असमिया
पारंपरिक गमोछा (तौलिया) देख कर सामने से असमिया दम्पति ने एक दूसरे के तरफ इशारा
किया, पूछा- “तुमी अहोमिया मान्हु न कि” ? मैंने प्रत्युत्तर दिया- “नहोय, आमि बिहारी, किन्तु मोय अहोमोत चाकोरी करु (नहीं
मैं बिहारी हूँ, पर असम में नौकरी करता हूँ) । इस बार
उन्होंने मेरे टूटे-फूटे असमिया भाषा को सुनकर हिंदी में जवाब दिया- “ये गमछा देख
कर मैं समझ गया था”। उन्होने पूछा- “पिता जी को असम घुमाया या नहीं” ? इस बार पापा जी ने खुद जवाब दिया –“हाँ, दो बार जा चुका हूँ । मुझे वहाँ का
परिवेश काफी अच्छा लगा । मेरी बहू (पतोहू) भी अभी असम में हीं है । उधर का मौसम भी
हमेशा सुहावना रहता है”। दम्पति ने पूछा- “और कहाँ-कहाँ घूमा असम में, अंकल जी” ? पापा जी ने कहा- “गुवाहाटी गया था, ‘माता कामाख्या’ के दर्शन किये । बहुत अच्छा लगा,
शांतिपूर्ण माहौल में माता के दर्शन किए ।
मेरी
ट्रेन सौ की रफ्तार से फर्राटे भर रही थी । बाहर का दृश्य काफी सुहावना था । दूर
तलक पसरी हरी-भरी खेत, उसमें काम करते
मेहनतकश किसान । उन किसानों को तो अपने काम से फुर्सत हीं नहीं, कितनी ट्रेनें आई, कितनी गई । बस अपने काम में डटे
रहते, हमारे अन्नदाता जो ठहरे । पर उनके छोटे-छोटे बच्चे
ट्रेन को आते देख भाग कर पास आ जाते और हाथ हिलाकर अभिवादन करते । कभी विकास की
रोशनी से दूर गांव तो कभी गाड़ियों के शोर-शराबे से लबरेज शहरों को चीरती भागी जा
रही थी मेरी ट्रेन । रास्ते में नदी, पहाड़, समतल मैदान सबको पीछे छोड़ते हुए । डब्बे के खिड़की में लगे बड़े-बड़े शीशे
से इन सब का नज़ारा लेते हुए पापा ने अपने अतीत के रेल यात्रा को याद करते हुए कहा-
“तब और अब की रेल में बहुत फर्क हो गयी । आज की ट्रेन इतनी तेज रफ्तार में भी
ज्यादा हिलती नहीं है, पहले की ‘छुक-छुक
वाली ट्रेन’ तो कम गति में हीं चारों तरफ से हिलने लगती थी”
। ट्रेन के कोच पर भी पापा जी ने गौर किया । कहा- “यह कोच दूसरे अन्य ट्रेनों के कोचों से
अलग है”। मैंने बताया –‘जी, यह एल.एच.वी. कोच है । यह बहुत कुछ मायनों मे पुराने नीले रंग के
कोचों से भिन्न है, यह अधिक आरामदायक और सुविधा सम्पन्न
है । इसे पहली बार जर्मनी से आयात की गई थी पर अब इसका निर्माण अपने हीं देश में
हो रहा है । साथ हीं यह भी बताया कि 2018 से सिर्फ इसी तरह के कोचों का उत्पादन होगा, पुराने कोच के निर्माण को बंद कर दिया
जायेगा । पर ट्रेन के रुकते और खुलते समय एक
झटका-सा महसूस होता था, जिस कारण यात्रियों
को बुरा लग रहा था । मैनें बताया कि यह झटका उस कपलर के कारण लग रही है, जो दो डब्बों को जोड़ने के लिये लगाये गये हैं । इसकी कुछ विशेषताओं के
कारण इसे प्रयोग में लाई जाने लगी है । हालांकि इसमें कुछ आवश्यक सुधार किये जा
रहे है, जिससे कि कम झटका लगे। एल.एच.वी. कोच पुराने वाले
नीले रंग के कोच से लगभग 2
मीटर लम्बी होती है, जिस कारण ज्यादा
यात्रियों के बैठने की जगह मिलती है । वजन में अपेक्षाकृत हल्की होने के कारण इसके
डब्बों और ट्रैक (रेलपथ) में टूट-फूट की कम गुंजाईश रहती है । इसका रखरखाव भी आसान
व कम खर्चीला है । इस कोच की गति-सीमा भी अधिक यानि 160
किलोमीटर प्रति घंटा है । यह कोच अधिक टिकाऊ व मजबूत है । साथ हीं आकर्षक भी दिखती
है । पापा जी ने यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं और सुरक्षाओं का भी गुणगान
किया । कहा–“आज भी यात्रा के लिये सबसे लोकप्रिय साधन रेल हीं है”। हर वर्ग के
लोगों के जेब के अनुसार अलग-अलग तरह की रेल सेवायें ।
कुछ
देर बाद ट्रेन में लगी साउंड सिस्टम से आवाज आई- “यात्रीगण ! कृप्या ध्यान दें । अगर इस ट्रेन में कोई डॉक्टर यात्रा कर रहें हैं तो
कृप्या ‘बी-2’ कोच में सीट नं. 25
पर एक यात्री को देख लें, जिन्हें डॉक्टरी
सहायता की जरुरत है” । बी-2
कोच मेरे कोच के बगल में हीं थी । हमलोग
देखने गये कि आखिर हुआ क्या ? कुछ देर में
डॉक्टर साहब आये जो एक यात्री के रूप में इसी ट्रेन में सफर कर रहे थे । टी.टी.ई.
साहब ने भी सहयोग किया । चिकित्सीय परीक्षण के बाद डॉक्टर साहब ने अपने पास से एक
टेबलेट दी और टी.टी.ई. को सलाह दिया कि कंट्रोल में फोन कर के अगले स्टेशन पर डॉक्टर
को काँल कीजिये, इन्हें कुछ और दवाईयों की जरुरत है । अगली
स्टेशन पटना थी, योजनानुसार स्टेशन पर रुकते हीं रेलवे के
तरफ से आये डॉक्टर ने उनका वहीं चेकअप किया और ट्रेन में सफर कर रहे डॉक्टर के
द्वारा बताई गई एक इन्जेक्शन दी । वहाँ ट्रेन अपने तयशुदा ठहराव के अलावे पंद्रह
मिनट ज्यादा रुकी । कोच के अन्य यात्रियो ने भी चैन की सांस ली और डाक्टरों के साथ
रेलवे की भी भूरी- भूरी प्रशंसा की । रात हो गयी थी, हमलोगों
को डिनर भी दे दी गई, डिनर किया और सो गये ।
सुबह
आँखें खुली तो ट्रेन कानपुर पहुँच चुकी थी । अब हमलोग उत्तर प्रदेश में सफर कर रहे
थे। उत्तर प्रदेश का नाम सुनते ही विश्व प्रसिद्ध ‘ताजमहल’ का ख्याल अनायास मन में
आ जाता है । मैंने मन ही मन सोचा कि अगली बार पापा जी को आगरे का ताजमहल दिखाने
लाऊँगा । पर मेरी ये हसरत अब कभी पूरी नहीं होगी क्योंकि मेरे पापा अब इस दुनिया
में नहीं रहे ।
अब
महज पाँच घंटे और बचे थे, नई दिल्ली पहुँचने
में । कैटरिंग वाले ने हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्र प्रत्येक कम्पार्टमेंट में
बाँट दिये, ये पैसेंजर के लिये मुफ्त थे । जबकि ट्रेन में
पहले से एक मैगजीन सभी कम्पार्टमेंट में पड़ी हुई थी ।“रेल बंधु” नामक यह मासिक
पत्रिका भारतीय रेल की ‘ऑन बोर्ड मैगजीन’ है तथा हिंदी और अंग्रेजी द्विभाषिक रूप में होती है । यात्रा से संबंधित
महत्वपूर्ण जानकारी, रोचक लेख व कई पर्यटन स्थलों की
जानकारियाँ भी इसमें दी गई थी ।इस पत्रिका पर लिखा था – “यह पत्रिका केवल ट्रेन
में पढ़ने के लिये है, कृप्या साथ न ले जाएं” । हालांकि मैंने
एक सज्जन यात्री को उसे अपने साथ ले जाते और एक अन्य यात्री को समाचार पत्र से अपने
जूते भी पोछते देखे । बड़ा दु:ख हुआ, लोग रेल में दिये सुविधाओं
और सरकारी सम्पत्ति का किस तरह दुरुपयोग करते हैं ।
‘ऑन बोर्ड हाउस कीपिंग’ वाले यानि कि चलते ट्रेन में
डिब्बों की साफ-सफाई करने वाले लोग थे, जो सफाई कर रहे थे ।
पर उनकी संख्या शायद कम थी । मुझे लगा कि जितने लोग इसमें लगाये गये थे, उनमें से आधे कहीं रास्ते में हीं उतर गये । रेलवे उनलोगों को एक फीडबैक
फॉर्म भी देती है, जो यात्रियों को भरकर देनी होती है । उसने
हमारे कम्पार्टमेंट में आकर कहा- “बाबू जी, रुम फ्रेशनर मार
दूँ”? यात्रियों ने टोका- “भाई ! पहले आया होता”? उसने रुम फ्रेशनर स्प्रे करके ही....ही....करते हुए फीडबैक फॉर्म थमाकर
इसे भर देने को कहा । यात्रियों ने भी उस रुम फ्रेशनर के एहसान तले दबकर उस फीडबैक
फॉर्म मे सब अच्छा-अच्छा हीं लिखा । हम सब ने यह महसूस किया कि रेलवे को किसी बीच
के स्टेशन में इन सफाईकर्मियों की औचक निरीक्षण करनी चाहिये । यह बात अलग थी कि
कुछ यात्री स्वयं कोच में गंदगी फैला रहे थे और दोष सिस्टम को दे रहे थे । ये ठीक
है कि आपने किराया दिया है, आपको सुविधा और सफाई चाहिये पर
उस सफाई को बरकरार रखना भी तो आपकी जिम्मेदारी है । क्या हम अपने घरों में इसी
मानसिकता के साथ रहते हैं ?
इस
यात्रा के दौरान हमने देखा कि कुछ लोग बाथरुम के पास बैठे या लेटे हुए थे । पूछने पर
पता चला कि इन यात्रियों को कैटरींग वाले, ए.सी.मेंटेनेंस
वाले या बेडशीट देने वाले कुछ ले-देकर गलत तरीके से यात्रा करवाते हैं । यात्रियों
में खासकर जो महिला सदस्य हैं, उन्हें असुविधा हो रही थी ।
बाथरुम आते-जाते वो असहज महसूस कर रही थी । कम्पार्टमेंट में जो वैध यात्री थे, उनका तो कुछ न कुछ नाम-पता फोन नम्बर वगैरह मिल जायेगा पर इन अतिरिक्त यात्रियों का क्या भरोसा ? उन्हें डब्बे में किसी भी हालत में प्रवेश की अनुमति नहीं होनी चाहिए ।
पापा जी ने एक बेहतरीन सुझाव दिया कि क्यों न प्रिंट टिकट को खत्म कर फोन पर टिकट
भेजी जाये, एस.एम.एस. के द्वारा । जिससे यात्रियों की पुख्ता
पहचान हो सके और फोन नम्बर को आधार से भी लिंक होना चाहिये । मैंने व आम यात्रियों
ने भी महसूस किया कि बात में दम है । अभी तो कोई भी आदमी अपना गलत पता देकर और गलत मोबाईल नम्बर देकर काउंटर से टिकट लेकर
सफर कर सकता है । बात रही पहचान पत्र दिखाने की, तो वह भी
दिखा देगा । पर अगर वह यात्री किसी घटना को अंजाम देकर उतर जायेगा तो उसे बाद में
कैसे पकड़ेगें ? पता गलत, फोन नम्बर गलत, जो पहचान पत्र उसने दिखाया, उसका रेलवे ने कोई रिकॉर्ड
नहीं रखा ।
ट्रेन
में कुछ हेल्पलाइन नम्बर और एस.एम.एस. के लिए टॉल फ्री नम्बर के स्टीकर लगे थे, जिसमें ये जानकारी दी गई थी कि यात्री अपने किस समस्या के लिए किस से
सम्पर्क करे । हमने तो यह भी सुना कि कैसे एक ट्वीट पर रेलमंत्री जी ने ट्रेन में
बच्चे के लिए दूध पहुँचा दी ।
हमारी
ट्रेन महज 10
मिनट देर से चल रही थी । ट्रेन का परिचालन समयवद्ध हो तो यात्रियों और रेलकर्मियों
दोनों के लिए यह अच्छी बात होती है । नई दिल्ली एक व्यस्ततम रेलवे स्टेशन है, सो मेरी ट्रेन प्लेटफॉर्म पर अपनी जगह बनाते-बनाते 30
मिनट
और विलम्ब हो गई । लगभग 11:00
बजे नई दिल्ली पहुँची । वहाँ से हमलोगों को पुरानी दिल्ली स्टेशन जानी थी । स्टेशन
पर एस्केलेटर लगाये गये थे, जिससे बुजुर्ग और बच्चों को फुटओवर ब्रिज पर चढ़ने-उतरने
में सुविधा होती है । पर यह सुविधा नाकाफी थी । अभी कुछ और एस्केलेटर लगाई जानी
चाहिये । यह सुविधा देश के सभी स्टेशनों पर होनी चाहिये । स्टेशन से बाहर निकल
कर ऑटो वाले की मनमानी देखा, अनाप शनाप भाड़ा वसूल रहे थे ।
यहाँ तक की पैसेंजर से बदतमीजी से भी बात कर रहे थे । हमने प्री-पेड ऑटो या फिर
प्राईवेट कैब से जाना उचित समझा । कैब से पुरानी दिल्ली आ गए, वही से शाम के 03:20
बजे जयपुर के लिए हमारी ट्रेन 12916
आश्रम एक्सप्रेस थी । प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित विश्रामालय में कछ देर आराम
किया । स्टेशन के बाहर और प्लेटफॉर्म दोनो जगह हमने देखा यात्रियों के लिये खाने
के लिये कोई अच्छी दुकान नहीं थी । एक मेकन्डानॉल्ड का कैंटीन दिखा और दूसरी कॉमेजियम, थोड़ी मंहगी लगी । वहीं दोपहर का खाना खाया । मुझे लगा कि यात्रियों के
लिये कुछ और सस्ती भोजनालय की व्यवस्था स्टेशन पर होनी चाहिये ।
आश्रम एक्सप्रेस तय समय पर खुली । हमलोगों को जयपुर स्टेशन 08:25
बजे रात में पहुँचाई, बिल्कुल सही समय पर ।
स्टेशन पर हीं फूड प्लाज़ा नाम से एक रेस्टोरेंट थी, कीमत भी
ठीक-ठाक थी । वहीं रात का डिनर लिया । जयपुर स्टेशन पर हमने जो वातानुकूलित प्रतीक्षालय
देखा, वह विश्व-स्तरीय सुविधा वाली थी । प्लेटफॉर्म भी
साफ-सुथरी थी । प्री-पेड टैक्सी लेकर सी.पी.डबल्यू.डी. के ‘ऑफिसर्स
टूरिस्ट होम’ चला गया ।
रात्रि
विश्राम के बाद सुबह तैयार होकर बेटी के इंस्टीट्यूट के लिए निकल पड़ा । ट्रैवल
एजेंसी से बात कर कार बुक किया । उस दिन हमलोगों ने आमेर का किला, सिसोदिया गार्डेन और जल महल देखा । थककर चूर हो गये थे, बेटी ने कहा- ‘ये सब तो पुराने जयपुर की बात है, अब आधुनिक जयपुर को देख लीजिये’ । ‘मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट’ के पास हीं एक शानदार
शॉपिंग मॉल है, डबल्यू. टी. पी. यानि ‘वर्ल्ड
ट्रेड पार्क’ और दुबई बाज़ार, वहाँ की
ठाठ-बाठ को देखकर दंग रह गया । सोचने लगा कि लोगों के पास कितना पैसा है ? कौन कहता है कि हमारा देश गरीब है ? पर हकीकत है की
यह शानों-शौकत कुछ लोगों तक हीं सीमित है । हमने सोचा यहाँ के महंगे ठाठ-बाठ वाले
खाने का आनंद उठाया जाये । रात का डिनर वहीं किया, एकदम शाही
अंदाज के साथ । दूसरे दिन हमलोगों ने हवा महल, जंतर-मंतर, सिटी पैलेस व बिड़ला मंदिर देखे । मेरे पापा अच्छे फोटोग्राफर भी रहे हैं, सो उनके द्वारा खीचे गये फोटो आज भी मैंने सहेज कर रखे हैं । यहाँ सालों
भर सैलानियों का तांता लगा रहता है । देश-विदेश के लोग यहाँ आते हैं । वहाँ के लोगों
के रंगीन पगड़ी के साथ रंग-बिरंगे परिधान बरबस लोगों
को आकर्षित कर लेते हैं । वहाँ के खास व्यंजन ‘दाल-बाटी चूरमा’ काफी प्रसिद्ध है । सचमुच राजस्थान
में अतिथियों का स्वागत दिल से की जाती है । फिर तीसरे दिन हमलोगों ने कुछ शॉपिंग कर के वापसी की ट्रेन पकड़ ली ।
इस तरह हमने पापा जी के संग एक यादगार रेल यात्रा पूरी की । मैंने देश के पूर्वी हिस्से असम से लेकर पश्चिम छोर पर बसे राज्य राजस्थान तक के आवो-हवा, रंग-ढ़ंग और पहनावे को देखा, एकदम अलग । विविधताओं से भरा हमारा यह देश सचमुच महान है और महान है हमारी विरासत । इन विविधताओं से भरे मेरे देश को एक सूत्र में पिरोने में रेल की अहम भूमिका है । यह देश को जोड़ने वाली ‘भारत की जीवन रेखा’ है । जिंदगी में हमने कई यात्राएं की पर यह रेलयात्रा हमारे जीवन की सबसे अहम यात्रा रही । एक नई अनुभव और सुख की अनुभूति देने वाली यात्रा थी । रेलयात्रा सचमुच “सफर की रानी” है । यात्रा के कोई भी साधन इससे मजेदार नहीं हो सकते, यहाँ तक कि हवाई यात्रा भी नहीं । अमीर-गरीब सब की रेल, हर मजहब हर जात की रेल, हर भाषा हर प्रांत की रेल । अपने आप में सम्पूर्ण भारत को प्रतिबिम्बित करने वाली एक ‘मिनी भारत’ । - विनय कुमार बुद्ध
Train journey with father
Sitting
on the shoulder of the father, we have seen the world, who himself has faced
the shortages and fulfilled our needs. We have some duty towards that god like
father. Due to our good upbringing, who confined themselves to the village. It
is also our duty to introduce them to the changing environment outside. I
thought I should take Papa ji out somewhere. A place that is worth visiting and
is also rich in today's new age of technology. So I thought of the famous city
of Jaipur in the world as Pink City. I also chose this city because my daughter
is studying 'B.tech' from Chemical Engineering at Malaviya National Institute
of Technology. Because of which I am well aware of that city.
My wife was also eager to turn Papa. However, she was not able to leave due to her health problems. The plan has been prepared, which train to go, where to stop, what to see and which dishes we can enjoy. I, my wife and my daughter together finalized the plan. According to the plan, Papa was to be taken from the "Rajdhani Express", considered to be India's prestigious train service. Now the problem was that Papa lived in his native residence Khagaria, Bihar while Rajdhani Express does not stop at that station. So we planned to complete the journey up to Jaipur in three different trains.
My
journey started on 15 July 2016 from New Banggaon station in Assam, where I am
a railway employee. 15909 Avadh-Assam Express opened at 01:15 in the night and
reached Khagaria station at about one o'clock in the next day. Papa reached the
station as per the scheduled program. I boarded my father in the train, the car
started again. After about an hour, we came to Barauni station. We left the
train there. We came to the waiting room because our train was there at seven
past seven in the evening. There
were some children, upon seeing this, Father came in the form of his master.
Actually, a group of school children were going to visit Kashmir. Father was
addressing the children in his familiar style –
Sons are sown,
But daughters grow up.
Sons get fertilizer, water,
But daughters are shaking
My
father was also a little politician in nature and he noticed that there are
more girls in this group. The girls looked quite happy. Finally the arrival of
our train 12423 Rajdhani Express was reported, we came on the platform. The
train stopped, climbed into it and grabbed its seat. Papa ji was happy that he
got the seat below, otherwise it would have been difficult to get up and down.
When I told that the railway gives preference to the downstairs seats to the
elderly passengers, they described this move of the railways as good, and also
took pleasure in discounting the ticket price. I told them that the railway
gives concession in ticket prices to different passengers in more than fifty
different types of classes. These concessions, besides senior citizens,
students, youth, unemployed, patients, disabled, journalists, sportspersons,
NCC And is given to scouts, soldiers and their widows, farmers, doctors and
national awardees. IRCTC opened as soon as the train opened The catering person
brought bottles of water. Bed sheet, pillow, blanket and a small towel were
already present. Rajdhani Express trains are given some special facilities
instead of common trains. The biggest convenience is that tea, refreshments,
food and other things are served at your seat. An Assamese couple was going to
Delhi for their treatment in the same compartment as our co-passengers. A
working Bengali youth was traveling in connection with his duty and a young man
was going to Delhi from Guwahati, he was an IIT. Was a student of Guwahati.
After the introduction in the entire compartment, an atmosphere of affinity was created. Were
going to the bathroom wearing each other's sleepers (slippers). Some dry fruits
(dry fruits) and Hajme tablets brought from home, some homemade pickles were
exchanged among themselves. Although the railway instructs on such exchanges,
no passenger should fall prey to any intoxicating Khurani gang. But not all
people are like this. Due to some unwanted people in our society, our entire
civilized society comes under suspicion.
Seeing
the Assamese traditional gomocha (towel) near me, the Assamese couple pointed
towards each other from the front, asking- "Tumi Ahomiya Manhu Nahi"?
I replied - "Nahoy, Aam Bihari, but Moy Ahomot Chakori Karu (No I am
Bihari, but I work in Assam). This time, listening to my broken Assamese
language, he replied in Hindi - "I understood it after seeing this swagger".
He asked - "Did father rotate Assam or not"? This time Papa Ji
himself replied - "Yes, I have gone twice." I liked the surroundings
there very much. My daughter-in-law (Patoh) is also in Assam. The weather there
is also always pleasant ”. The couple asked- "Where else did you go in
Assam, Uncle ji"? Papa ji said- "I went to Guwahati, saw 'Mata
Kamakhya'. It was very nice, saw the Maa in a peaceful environment.
My train was filling at a speed of
a hundred. The view outside was quite pleasant. Far-field green fields, hard
working farmers working in it. Those farmers did not have free time from their
work, how many trains came, how much they left. Just sticking to our work, our
food providers who stayed. But their small children would run near seeing the
train coming and waved their
hands. Sometimes the village was away from the light of development, sometimes
the noise of the trains was rushing to the cities that were raping my train. On
the way, leaving behind all the rivers, mountains, flat plains. Taking a look
at all this with a big mirror in the window of the box, Papa recalls his past
train journey and said, “There was a lot of difference between the rail then and
now. Today's train does not move much even at such a high speed, the earlier
'chhuk-chhuk train' used to start moving from all around in low speed. Father
also noticed the coach of the train. Said- "This coach is different from
coaches of other trains". I told - ji, this L.H.V. Is a coach. It is
different from the old blue coaches in many ways, it is more comfortable and
comfortable. It was first imported from Germany but now it is being
manufactured in its own country. It was also informed that from 2018 only such
coaches will be produced, construction of old coaches will be stopped. But when
the train stopped and opened, there was a shock, due to which the passengers
felt bad. I told that this shock is due to the coupler, which has been fitted
to connect the two boxes. Due to some of its features, it is being used.
However, some necessary improvements are being made, so that there will be less
shock. Lhv The coach is about 2 meters taller than the old blue coach, due to
which more passengers have seating. Being relatively light in weight, there is
less scope for wear and tear in its boxes and tracks. Its maintenance is also
easy and less expensive. The speed limit of this coach is also higher i.e. 160
kilometers per hour. This coach is more durable and strong. It looks attractive
as well. Papa also praised the facilities and protections offered to the
passengers. Said - "Even today the most popular means for travel is
rail". Different types of railway services according to the pockets of
people of every class.
After
some time the sound came from the sound system in the train - "Passengers!
Please pay attention. If there are any doctors traveling in this train, please
seat no. Look at a passenger at 25 who needs medical help ”. The B-2 coach was
right next to my coach. We went to see what happened? In a while, Doctor came
who was traveling in the same train as a passenger. TTE Sir also cooperated.
After the medical examination, Doctor gave himself a tablet and T.T.E. He was
advised to call the doctor at the next station under control, he needs some
more medicines. The next station was Patna, as soon as the station stopped; the
doctor who came from the railway checked her there and gave an injection told
by the doctor traveling in the train. There the train stopped for fifteen
minutes more than its scheduled stop. Other passengers of the coach also
breathed peace and praised the railways along with the doctors. It was night,
we were also given dinner, had dinner and slept.
When
the eyes opened in the morning, the train had reached Kanpur. Now we were
traveling in Uttar Pradesh. On hearing the name of Uttar Pradesh, the idea of
world famous 'Taj Mahal' comes to mind spontaneously. I thought in my mind
that next time I will bring Papa ji to show the Taj Mahal of Agra. But my
desire will never be fulfilled now because my father is no longer in this
world. Now only five hours were left to reach New Delhi. The caterers
distributed Hindi and English newspapers in each compartment, they were free
for passengers. While the train already had a magazine lying in all the
compartments. This monthly magazine called 'Rail Bandhu' is 'On Board Magazine'
of Indian Railways and is bilingual in Hindi and English. Important information
related to travel, interesting articles and information of many tourist places
were also given in it. This magazine wrote - "This magazine is only for
reading in the train, please don't take it with you". However, I saw a
gentleman carrying him with me and another passenger wiping his shoes from the
newspaper. Sadly, how do people misuse the facilities and government property
given in the railways.
The ones on the 'On Board Housekeeping',
that is, the people on the moving train were cleaning the coaches, who were doing
the cleaning. But their number was probably less. I felt that half of the
people who were put in it got somewhere. Railways also provide a feedback form
to them, which is required to be filled out by the passengers. He came to our
compartment and said- "Babuji, let me kill the room freshener"? The
passengers interrupted - “Brother! Would have come before? He sprayed the room
freshener and while doing it he asked for the feedback form and filled it.
Passengers too, under the favor of that room freshener, wrote all the good in
the feedback form. We all felt that the railway should surprise inspectors of
these scavengers in some middle station. It was different that some passengers
were spreading dirt in the coaches themselves and blaming the system. It is fine
that you have paid the rent, you need convenience and cleanliness, but it is
your responsibility to maintain that cleanliness as well. Do we live in our
homes with this mindset?
During this trip we noticed that some
people were sitting or lying near the bathroom. On being asked, it was found
that these passengers carrying caterers, AC maintenance or giving bedsheets had
some wrong way of travel. The passengers, especially female members, were
inconvenienced. She felt uncomfortable going to the bathroom. Those who were
legitimate passengers in the compartment will get some name or address phone
number etc. But what is the confidence of these additional passengers? They
should not be allowed to
enter the box under any circumstances. Papa ji gave a great suggestion why not
finish the print ticket and send the ticket over the phone, SMS through . So
that the passengers can be clearly identified and the phone number should also
be linked to Aadhaar. I and ordinary travelers also felt that there was power
in the matter. Right now, any person can travel by taking a ticket from the
counter by giving his wrong address and wrong mobile number. If it is to show
the identity card, then it will also show. But if that passenger takes off
after an incident, how will he be caught later? Address wrong, phone number
incorrect, railway did not keep any record of the identity card it showed.
Some
helpline numbers and SMS in the train Toll free number stickers were installed
for which information was given to whom the passenger should contact for his
problem. We also heard how on a tweet, the Railway Minister delivered milk for
the child in the train.
Our
train was running only 10 minutes late. This is good for both passengers and
railwaymen if the train is operational. New Delhi is the busiest railway
station, so my train was delayed for 30 minutes while making its way on the
platform. Reached New Delhi at around 11:00. From there, we had to go to Old
Delhi station. Escalators were installed at the station, which allows the
elderly and children to climb the footover bridge. But this facility was
insufficient. Some more escalators should be installed now. This facility
should be available at all stations in the country. After getting out of the
station, he saw the arbitrary of the auto, and was charging the rent of a peep.
He was even talking to the passenger in a rude manner. We thought it better to go by pre-paid auto or private cab. Came
to Old Delhi by cab, from there our train to Jaipur was 12916 Ashram Express at
03:20 in the evening. Rested first
in the first class air-conditioned restroom. Outside the station and on both
the platforms, we saw that there was no good shop for the passengers to eat.
One showed the canteen of Mcdonald and the other Comesium, a little expensive.
Had lunch there I felt that some more affordable restaurants should be arranged
at the station for the passengers.
Ashram Express started on time. We reached Jaipur station at night at 08:25, at exactly the right time. There was a restaurant called Food Plaza at the station, the price was also good. Had dinner there. The air conditioned waiting room we saw at Jaipur station was of world-class facility. The platform was also clean. CPWD with pre-paid taxi. Went to the Officers' Tourist Home.
After night's rest,
got ready in the morning and left for the daughter's institute. Talked to
travel agency and booked car. That day we saw the fort of Amer, Sisodia Garden
and Jal Mahal. Tired and shattered, the daughter said- 'This is all about old
Jaipur, now look at modern Jaipur'. Malaviya National Institute has a great
shopping mall near it. TP or 'World Trade Park' and Dubai Bazaar, was stunned
by the chic atmosphere there. Started thinking how much money people have? Who
says our country is poor? But the reality is that this pride and passion is
limited to a few people. We thought that the expensive chic food here should be
enjoyed. Dinner was served there, with the same royal style. The next day we
saw Hawa Mahal, Jantar Mantar, City Palace and Birla Temple. My father has also
been a good photographer, so even today I have saved photos taken by him. There
is a influx of tourists here throughout the years. People from all over the
world come here. The colorful turban and colorful costumes of the people there
attract the barbas. Dal-Bati
Churma is a very popular dish. In Rajasthan, guests are truly welcomed by
heart. Then on the third day, we did some shopping and caught the return train.
In this way we completed a memorable train
journey with Papa ji. I saw the air, color and dress from Assam in the eastern
part of the country to the state of Rajasthan at the west end, completely
different. This country of ours is truly great and our heritage is great.
Railways play an important role in making my country full of these variations
in one thread. It is the 'lifeline of India' connecting the country. We have
done many journeys in life, but this train was the most important journey of our
life. It was a journey that gave a new experience and a feeling of happiness.
The train journey is truly the "queen of travel". No means of travel
can be fun, not even air travel. The rail of every rich, poor, train of every
religion, train of every province, every language. A 'mini India' that reflects
the whole of India in itself.
- Vinay Kumar Buddh
12 टिप्पणियाँ
Bhud khub sir ji
जवाब देंहटाएंThank you
हटाएंNice...
जवाब देंहटाएंthank you
हटाएंBahut achi lagi...mai to kho gya tha apke safar me..👌👌😊
जवाब देंहटाएंdhanyvaad jee
हटाएंपापा के साथ ज़िन्दगी कैसे कट जाती हैं , पता ही नही चलता l रेल यात्रा तो और भी सुहानी बन जाती हैं ,जब हो अभिभावक का साथ 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने
हटाएंBahut hi sundar lekh ,shandar👌👌
जवाब देंहटाएंआपका आभार
हटाएंबहुत सुंदर। यात्रा में मैं साथ नहीं था पर हर दृश्य आंखों के सामने था।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
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