(राधेश्यामी छंद)
****
नित सुबह-सवेरे जगकर के,
अपने ईश्वर को याद करो ।
फिर मात-पिता के चरणों में,
नित झुककर सभी प्रणाम करो ।।
उनका ही जीवन दिया हुआ,
कुछ अपना तेरा नहीं यहाँ ।
सोचो अगर नहीं ये होते,
फिर तेरा क्या अस्तित्व यहाँ ।।
जिसने तुमको ज्ञान दिया,
उस प्रिय गुरुवर को याद करो ।
नित सुबह-सवेरे जगकर के,
अपने ईश्वर को याद करो ।।
हे तात सुनो मेरी बातें,
मैं बात पते की कहता हूँ ।
मैं कलमकार हूँ अदना-सा,
कविता जन-जन की रचता हूँ ।।
सिर इनका उठ पाय गर्व से,
तुम जग में ऐसा काज करो ।
नित सुबह-सवेरे उठकर के,
अपने ईश्वर को याद करो ।।
मिलकर प्रकृति का संरक्षण हो,
मानव-मानव से प्यार करे ।
नफरत को दिल से दूर भगा,
सब दया-धरम की बात करे ।।
तुम योग-धर्म को अपना लो,
फिर प्रकृति संग संवाद करो ।
नित सुबह-सवेरे उठकर के,
अपने ईश्वर को याद करो ।।
✒️ विनय कुमार 'बुद्ध'
12 टिप्पणियाँ
बहुत बढ़िया आपने सही कहा सर जी
जवाब देंहटाएंBahut hi achcha story h ...
जवाब देंहटाएंMaa se bara koe devi nahi...
Pita se bara koe devta nahi...
Guru se bara koe gyani nahi..
Yahi sansar h ....
Yahi sansar ka low h...🙏🙏
Bhut hi achiii baat h...
जवाब देंहटाएंGurudev 🙏🙏🙏💗
Ramjash saini
बहुत सुंदर सर जी
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर सर जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंBohut hi achha bichar in sundar pankitiyo k duwara sir
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सही कहा है सर जी! मैं आपके लेखन कला का फैन हूं सर !
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर सर् दिल को छू गया
जवाब देंहटाएंBahut hi achha laga sir
जवाब देंहटाएंApke wani padh ke
🙏🙏
जवाब देंहटाएं