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राजनीति के खेल में,
नहीं भले की मोल।
सहमी-सहमी कोयलें,
कौवे करे किलोल।।
खादी की न लाज रखी,
समझ न पाए मोल।
सीधे-सादे लोग के,
जाकर बिगड़े बोल।।
रंगा सियार घूमता,
बदले गिरगिट रंग।
खादी वाले जंतु से,
देश आज है तंग।।
बना रखी है कोठियां,
लूट देश का माल।
पेट निकल बाहर हुए,
बने टमाटर गाल।।
कुर्सी शर्मिंदा हुई,
पाकर इनको आज।
भले लोग को हीं चुनो,
जागो सकल समाज।।
✒ विनय कुमार 'बुद्ध'
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