हिसाब बराबर

उसने,

न कुछ ज्यादा

न कुछ कम किया है,

सिर्फ

अपना हिसाब 

बराबर किया है।


जिसे,

मंदिर की सीढ़ियों से

रोता उठा लाया था,

आज वही 

हमदोनों को 

उसी सीढियों पर,

रोता छोड़ गया है।।


हालात

कुछ एक सी थी,

वो भी असहाय था,

अब मैं भी हूँ।

फर्क 

बस इतनी सी,

वो सात दिन का था,

मैं सत्तर साल का हूँ।

✒️ विनय कुमार बुद्ध

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15 टिप्पणियाँ

  1. Very emotional sir.... Sad but true story of few ignorant people who does not value the relationship. .. .

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  2. Hope your beautiful description in form of writing Will strike the conscience of our society.


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