बेटी तो ससुराल की,
पूत गए परदेस ।
घर में बस दोनों बचे,
बूढ़ा-बुढ़िया शेष ।।
टुकुर-टुकुर दोनों तके,
नैन बहाये नीर ।
अपने ही जब घाव दे,
किसे सुनाये पीर ।।
इक दूजे के पोछते,
आँसू बारम्बार ।
भाग्य-रेख में क्या लिखा,
करता यही विचार ।।
✒️ विनय कुमार बुद्ध
बेटी तो ससुराल की,
पूत गए परदेस ।
घर में बस दोनों बचे,
बूढ़ा-बुढ़िया शेष ।।
टुकुर-टुकुर दोनों तके,
नैन बहाये नीर ।
अपने ही जब घाव दे,
किसे सुनाये पीर ।।
इक दूजे के पोछते,
आँसू बारम्बार ।
भाग्य-रेख में क्या लिखा,
करता यही विचार ।।
✒️ विनय कुमार बुद्ध
24 टिप्पणियाँ
Deep Heart touching poem.....sir
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंBigg true........of life
जवाब देंहटाएंRamjash saini
right
हटाएंBahut hi achi kavita sir..
जवाब देंहटाएंSamaj ki sachai vaiyakt karti hai..
sahi
हटाएंआज के पढ़े लिखे व समृद्ध समाज की कटु सच्चाई।
जवाब देंहटाएंright
हटाएंBilkul sahi bat sir jee
जवाब देंहटाएंBilkul sahi bat sir jee
जवाब देंहटाएंवर्तमान जीवन की हकीकत है। हम इंसान अपने जीवन की अंतिम परिणाम को जानने के बाद भी हजार गलतियां कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंBahut achhi kavita
जवाब देंहटाएंdhanyvad jee
हटाएंबहुत ही सुंदर भाव एव रचना
जवाब देंहटाएंabhhar
हटाएंBhot acha h uncle...
जवाब देंहटाएंdhanyvaad jee
हटाएंVery nice sir g
जवाब देंहटाएंthank u
हटाएंज़िंदगी की सच्चाई को वयां करती है यह कविता
जवाब देंहटाएंdhanyvaad
हटाएंVery nice sir
जवाब देंहटाएंVery good head sir
जवाब देंहटाएंthank you
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