बेटी घर की शान है,
बेटी घर की मान।
मर्यादा में है बँधी,
दो कुल की पहचान।।
बेटी से होते यहाँ,
रौशन घर परिवार ।
किलकारी घर गूंजती,
खुशियां मिले अपार ।।
राखी का त्यौहार है,
बेटी तुम बिन सून ।
घर की बगिया की महक,
बेटी पुण्य प्रसून ।।
घर की लक्ष्मी बेटियां,
करिए मत अपमान।
रुन-झुन वह करती फिरे,
मिश्री घोले कान ।।
बेटी तुमने कोख में,
आज दिया जब मार।
बहू मिलेगी कल कहां,
तुमको नहीं विचार।।
गफलत को मत पालिए,
करिए तनिक विचार।
बेटी से भी मिल रही,
मोक्ष और उद्धार ।।
✒© विनय कुमार बुद्ध
24 टिप्पणियाँ
Well done sir
जवाब देंहटाएंthank u so much
हटाएंबहुत ही सुंदर कविता सर जी!
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद
हटाएंBahut acha h..
जवाब देंहटाएंdhanyavad jee
हटाएंbhut Hi shandaar .....paranaam gurudevv....
जवाब देंहटाएंRAMJASH SAINI
dhanyavaad saini
हटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंthanku
हटाएंBeti ghar ki maan aur samman bahut khubsurat
जवाब देंहटाएंek dam sahi
हटाएंबहुत अच्छा sir
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंNice sir.. .. Aapka choice of topic hamesha kuch hatke hota hain
जवाब देंहटाएंthank you dear
हटाएंBahut achi kavita sir ji
जवाब देंहटाएंDhanyvad Niraj
हटाएंBahut hi sunder poem h sir
जवाब देंहटाएंThank u so much
जवाब देंहटाएंBeautiful poem sir
जवाब देंहटाएंthank u dear
हटाएंबहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंdahnyavaad ji
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