बेटी घर की शान है,

बेटी घर की मान।

मर्यादा में है बँधी,

दो कुल की पहचान।।


बेटी से होते यहाँ,

रौशन घर परिवार । 

किलकारी घर गूंजती,

खुशियां मिले अपार ।।


राखी का त्यौहार है, 

बेटी तुम बिन सून ।

घर की बगिया की महक, 

बेटी पुण्य प्रसून ।।


घर की लक्ष्मी बेटियां, 

करिए मत अपमान। 

रुन-झुन वह करती फिरे,

मिश्री घोले कान ।।


बेटी तुमने कोख में,

आज दिया जब मार। 

बहू मिलेगी कल कहां, 

तुमको नहीं विचार।।


गफलत को मत पालिए, 

करिए तनिक विचार।

बेटी से भी मिल रही,

मोक्ष और उद्धार ।।

 ✒© विनय कुमार बुद्ध