बाल कृष्ण



मोर पंख सिर सोहते,

सुंदर रूप अनूप ।

बाल सखा सँग खेलते,

गिरधर बाल-स्वरूप ।।


मुरली की धुन छेड़ के,

गैया पास बुलाय । 

दौड़ी आई गोपिका, 

मंद-मंद मुस्काय ।।


माखन की चोरी करे,

बाल सखा सब गोप।

एक अकेले कृष्ण पर,

मढ़ते सब आरोप।।


मात यशोदा खीझ कर,

लिए लुकाठी धाय ।

कान्हा झट से भाग कर,

नंद गोद छुप जाय ।।


सूर नहीं जो कर सकूं,

वर्णन बाल-स्वरूप ।

कृपा भई जस श्याम की,

लिखा उसी अनुरूप ।।


विनय सहित अर्पण तुझे,

शब्दों के दो फूल ।

कवि बनने की राह में,

क्षमा करो सब भूल।।

विनय कुमार बुद्ध

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