नारी



     (विधा: चौपाई)

बहन सुता दारा महतारी । 

नारी जगत शक्ति अवतारी ।।

पर उपकार धरा महँ आई । 

नारी महिमा बरनि न जाई ।।


जहँ नारी पाबत दुख नाना । 

सो घर होयहु नरक सामना ।।

जे नर करहि नारि अवमाना । 

काहू न अधम ताहि समाना ।।


घाट-बाट घर-गली लजाई । 

दुष्टन नहीं तजे कटुलाई ।।

रावण बैठहि घात लगावा । 

आपन-आपन सुता बचावा ॥


बैठहु कारन कवन बिचारा । 

नारी भोगत कष्ट अपारा ।।

करहु जतन सब सज्जन भ्राता।

समय रहत चेतहु अब ताता ।।         


हर घर सुता पढ़हि जब आजू । 

करहि प्रगति तब सकल समाजू।

धन्य-धन्य समस्त परिवारा। 

कान्धा देई बनै सहारा ।।

(शब्दार्थ:   सुता=बेटी, दारा=पत्नी)

- विनय कुमार बुद्ध

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13 टिप्पणियाँ

  1. बहूत ही सुंदर पंक्तियाँ सर जी

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  2. बहुत अच्छी कविता,लेकिन आपने इस कविता में रावण का भी नाम लिया।तो एक सवाल उठाना होगा।रावण ने सीता का हरण क्यों किया....?
    यदि हरण किया तो अपमानित किया...?रावण की बहन का कान काटा गया(हिंसा किया) साथ ही नाक भी काटी गई....!
    क्यों कि सीता का हरण सुपर्णखा के नाक कटने और कान काटने के बाद हुई।
    जरूर रावण राम को अहसास दिलाना चाहता था कि स्त्री के साथ हिंसा व अपमान सिर्फ स्त्री का नही होता बल्कि पूरे रक्त सम्बन्धियों का अपमान भी होता है।
    रावण विद्वान था उसने सीता का सिर्फ़ हरण किया उनके साथ कभी अपमानजनक व्यहार नही किया।
    वैसे राम के सामने ही सीता की अग्नि परीक्षा ली गई।
    क्या इस परीक्षा में राम की मौन सहमति थी.....!

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  3. महिलाओं को सिर्फ सोचने का ही नहीं निर्णय लेने और सहभागी बनने का भी पूरा अवसर देना चाहिए।

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