कब बहुरे दिन यार।
किस्मत में क्या है लिखा,
करता यही विचार।।
जैसे तैसे आमजन,
पेट रहे हैं पाल ।
महंगाई खूब बढ़ी,
जीना हुआ मुहाल ।।
दवा, पढ़ाई, वस्त्र का,
कैसे करे उपाय ।
आठ आने कमा यहाँ,
खर्चा रुपया जाय ।।
सुरसा-जस मुँह फाड़ के,
हमें न जाए लील ।
कृपा करो सरकार अब,
मत दो इसको ढील ।।
आग लगी सामान में,
भरे पड़े गोदाम ।
जमाखोर को जेल दो,
तभी बनेंगे काम ।।
✒ विनय कुमार बुद्ध
1 टिप्पणियाँ
Very nice poem's sir
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