आफत वाली ठंड से,
घर में सहमे लोग ।
दुखिया जन लाचार हैं,
आप करे सहयोग ।।
फिक्र पेट की है जिसे,
कहां मिले परिधान।
आफत की इस ठंड से,
कौन बचाए जान ।।
कपड़े गर्म जमा करें,
रखे हुए बेकार ।
कंबल, स्वेटर, टोपियां,
कर देकर उपकार ।।
जिन्हें दिया भगवान ने,
खुला रखें वह हाथ।
तत्पर हो कर दीजिए,
दीन-दुखी का साथ ।।
"विनय बुद्ध" कहता यही,
पर-सेवा है धर्म ।
जग में पंडित है वही,
जो समझे यह मर्म ।।
✒ विनय कुमार बुद्ध, न्यू बंगाईगांव, असम, फोन: 9435913108
5 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुन्दर कविता सर जी!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंSir season cool cool chal raha abhi hum Delhi ja rahe h
जवाब देंहटाएंBahut Dhandi h north ki or ..
Hadi kapane wala dhand h ..
दिल्ली में ठंड ज्यादा हो सकती है। गर्म कपड़े पहनिए... ठंडी से बचकर
हटाएंसंवेदना से ओत प्रोत कविता
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