खेत छोड़ क्यों सड़कों पर



बो कर श्रम का बीज धरा पर,

स्वेद बहा सींचा करते। 

जो भरते हैं पेट सभी का,

आज वही भूखा मरते।


जब हम सोते चादर ताने,

सूरज सोया रहता है।

हल को रख कर वह कांधे पर,

संग बैल ले चलता है।


तेज धूप में बदन जलाए,

ठंडी हाड़ कँपातें हैं।

बरसा की परवाह नहीं है,

मीठी तान सुनाते हैं।


घरवाली खाना ले आई,

जो मिलता खा लेते हैं।

तब तक बैलों को खाने को,

घास-फूस दे देते हैं।।


फसल लगी तो देख-देखकर,

मन ही मन मुस्काते हैं।।

खा कर करते आराम नहीं,

पुनः काम पर जाते हैं।।


पत्नी-बच्चे सँग में उनके,

मेहनत खूब करते हैं।

उपजाते हैं अन्न जमीं से,

पेट सभी का भरते हैं।।


खेत छोड़ क्यों सड़कों पर हैं,

मिलकर तनिक विचार करो।

भविष्य सुरक्षित हो कृषक का, 

इनके सब संताप हरो।

✒ विनय कुमार बुद्ध


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