एक लकड़हारा घने जंगल के बीच चोरी-चोरी पेड़ काट रहा है.....खटाक......खटाक...... । कुल्हाड़ी के लगातार वार से पेड़ जख्मी होता जा रहा है। उसके जख्म से सफेद श्राव होने लगता है। पता नहीं आँसू हैं या श्वेत रक्तकण ? जब पेड़ कुल्हाड़ी के लगातार वार से कटकर गिरने को होता है तो उसके याचना -स्वर फूट पड़ते हैं- "प्रिय मित्र ! तुम मुझे क्यों काट रहे हो ?"
जवाब मिलता है- "मैं तुम्हें बेचकर अपने बाल-बच्चों का भरण-पोषण करूँगा ।"
वृक्ष- "जीविकोपार्जन के और भी तो तरीके हैं मित्र । मैं तो तुम्हारा अभिन्न मित्र हूँ । तुम मुझ पर नहीं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो।"
फिर कुल्हाड़ी का एक जोरदार प्रहार होता है और दरख़्त घहराकर जमींदोज हो जाता है ।
गिरते-गिरते वृक्ष से एक अत्यंत करुण याचना सुनाई पड़ती है- "मेरे दोस्त ! मैं तो तुम्हारे लिए ही बना हूँ । तुम मेरे तन से कुछ भी बनवा सकते हो, यथा- टेबल, खिड़की, दरवाजे, पलंग इत्यादि । मित्र ! एक गुजारिश है, कभी 'कुर्सी' मत बनवाना, बस 'कुर्सी' मत बनवाना.
- विनय कुमार बुद्ध
10 टिप्पणियाँ
Great story sir👌👌💐💐
जवाब देंहटाएंथंक यू
हटाएंVery nice sir👌👌💐💐
जवाब देंहटाएंथैंक यू
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर लघु कथा आप की रचनाये अति सराहनीय होती है सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना और एक अच्छा संदेश भी।
जवाब देंहटाएंDHANYAVAAD
हटाएंAati sunder lagukatha sir jee
जवाब देंहटाएंTHANK YOU SO MUCH
हटाएं