मछली बाजार से मछली खरीद ली, अब उसे घर में कौन साफ करे, कौन धोए ? बड़े ही मेहनत का काम है, ऊपर से ठंड का समय । बड़ी मछली को तो दुकानदार खुद काट देते है पर छोटी मछलियों को घर में साफ करनी पड़ती है ।
बाजार में कुछ गरीब-बुजुर्ग महिला बैठी रहती है और लोगों के छोटे-छोटे मछलियों को साफ कर व बनाकर दस रुपए पाव के हिसाब से पैसा लेती है। उसे मछली खरीद कर दे दिया । मुझे कुछ सब्जियां भी खरीदनी थी पर मैं वहां से हिल नहीं रहा था । मेरी सतर्क-चौकस निगाह उस पर गड़ी हुई थी। इसलिए नहीं कि वह ठीक से साफ कर रही है या नहीं बल्कि इसलिए कि कहीं वह एक दो मछलियाँ चुपके से गायब ना कर दे । कुछ लोग होशियार थे, वह उन छोटे-छोटे मछलियों को गिन कर उसे देकर चले जाते वापस पुनः गिन कर लेते थे।
"बाबूजी हो गया"- उसने आवाज लगाई।
सारे मछलियों को पॉलिथीन में डाल कर मुझे दे दी । मैंने बीस रूपए निकालकर उसे दी और चलता बना ।
तभी पीछे से आवाज आई- "बाबूजी..... बाबूजी....... ।
मैं मन ही मन बुदबुदाया- "इन लोगों से पैसे की बात पहले तय कर लो तो अच्छा है वरना बाद में जो मन सो मांगेंगी, गरीब लालची कहीं की"। अब कहेगी- “भाव बढ़ गया..... पंद्रह रूपए पाव"। मैंने गुस्से से पीछे मुड़ कर कहा- "क्या हुआ....? उसने कहा- "बाबूजी, पैसे निकालते समय आपका सौ का नोट गिर गया था, यह लीजिए” ।
मैं सिर झुका कर मछली बाजार से बाहर निकल गया ।
18 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुन्दर लघुकथा सर् जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंधन्यवाद
हटाएंसुन्दर है। भैया,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी, इसी तरह मेरी कविता/कहानियां पढ़ते रहिए और अपने कमेंट देते रहिए।
हटाएंBahut bahut सुंदर है
जवाब देंहटाएंथैंक यू इस कमेंट के किए।
हटाएंBhut hi acchi story h sir 🙏🙏
जवाब देंहटाएंdhanyvaad jee
हटाएंBht hi ach6i Kahani hai sir her
जवाब देंहटाएंthank u jee
हटाएंगरीब को देखने की नजरिया ही बदल गया है, फिर भी गरीब नहीं बदला।
जवाब देंहटाएंsahi
हटाएंअति सुंदर लघुकथा । इस कथा में ईमानदारी दिखाई गई ।
जवाब देंहटाएंthank u
हटाएंबहुत ही यथार्थवादी रचना सर
जवाब देंहटाएंdhanywaad aapka
हटाएंआप सभी को धन्यवाद
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